दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
अर्थ: हे भगवन, देवताओं ने जब भी आपको पुकारा है, तुरंत आपने उनके दुखों का निवारण किया। तारक जैसे राक्षस के उत्पात से परेशान देवताओं ने जब आपकी शरण ली, आपकी गुहार लगाई।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
अर्थ- हे प्रभु वैसे तो जगत के नातों में माता-पिता, भाई-बंधु, नाते-रिश्तेदार सब होते हैं, लेकिन विपदा पड़ने पर कोई भी साथ नहीं देता। हे स्वामी, बस आपकी ही आस है, आकर मेरे संकटों को हर लो।
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
शिव चालीसा - जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला.
यह एक चमत्कारीक स्त्रोत है read more जिसका पाठ करने से भोलेनाथ तो प्रसन्न होते ही है, साथ ही इससे बिगड़े हुए काम भी बन जाते है। इस स्त्रोत के पाठ शिव रात्रि या सावन के महीने में शुभ मानते है। शिव जी की अगर कोई श्रद्धा पूर्वक भक्ति करता है तो भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है। इसी कारण से भोले नाथ को ‘आशुतोष’ के नाम से भी जाना जाता है।
पाठ पूरा हो जाने पर कलश का जल सारे घर में छिड़क दें।
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥